ऐसा कहा जाता है कि मनुष्य के मतिष्क मेँ नवीन विचार सुरक्षा, शांति एवम विश्राम के वातावरण मेँ अंकुरित होते हैँ। लेकिन कुछ संस्थाऐँ अपने कर्मचारियोँ को कोल्हू के बैल की तरह जोतती हैँ , तत्पश्चात अपेक्षा करती हैँ कि उनके कर्मचारी कोई आविष्कारी क्रियाकलाप करेँ।
मैँ मानता हूँ कि आवश्यकता आविष्कार की जननी है लेकिन आवश्यकता की बेदी पर शरीर की बलि चढा देना कोई बुद्धिमानी नहीं है। अत: यह व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह अपनी क्षमता के अनुसार ही कार्य करे। अन्यथा इसके दुष्परिणाम हो सकते है।
साथ ही साथ अधिकारी वर्ग को भी चाहिए कि वह अहंकार से बचे तथा अपने अधिनस्थ व्यक्तियोँ को मशीन न समझकर मनुष्य समझे।
No comments:
Post a Comment