Saturday 11 January 2014

जेहाद नहीं, पाप है

 जेहाद नहीं, पाप है 

जेहाद के नाम पर
 कितनी बस्तियां उजाडीं ,
कितनी ही तक़दीरें 
बनने से पहले बिगाड़ी,
मासूमों के हाथ में 
रख दिए हथियार,
मिटा दिये सुहागिनों के 
सोलह श्रृंगार,
तुम्हारे जुल्म कहानी 
कहती है कश्मीर की हर गली,
ये गुलशन-ए- गुल 
लगता है कोई बस्ती जली ,
क़दमों तले रौंदी 
तुमने इंसानियत,
अमन के खेत में 
बो दी नफरत,
फिर बनाते हो 
दीन  के पुजारी,
यह दीन की खिदमत नहीं ,
दीन  से है गद्दारी ,
मज़हब ने सिखाया 
चैनो अमन,सुकूं,
तुमने बहाया 
बेगुनाहों का लहू,
अल्लाह क पैगाम है 
भाईचारा,
तुमने किया दिलों का बंटवारा,
गर बनते हो सच्चे 
मज़हब के पहरेदार,
तो फैला दो जहाँ में 
भाईचारा और प्यार,
और लगालो गले उन्हें 
जो है लाचार ,






Monday 30 December 2013

काश आंसू सच या झूठ बता पाते

                              काश आंसू सच या झूठ बता पाते

आंसू 
 जब  आँखों से निकल कर 
कपोलों पर लुढ़कते हैं
 तो  दर्शाते हैं, 
कि ह्रदय में 
 ग़मों की बर्फ 
 पिघल रही है
मुसीबतों कि तपिश 
     सिर पर  पड़ रही है,
काश 
आंसू भी 
बयान दे पाते ,
बता पाते कि 
वे सच्चे हैं 
या बनावटी,
ह्रदय के तल से निकले हैं 
या हैं मगरमच्छी,
कभी -२ दिल 
हँसता है 
आँख रोती है,
जब रोने वाले की 
नीयत खोटी होती है 
या फिर 
कोई ख़ुशी 
दिल के पात्र में 
ठीक प्रकार से 
नहीं समायोजित होती है । 
इसीलिए 
यदि आंसू के 
जुबान होती 
तो पहचान पाते 
कौन सच्चा है ,
कौन है फरेबी,
कौन शामिल है 
हमारे ग़म में,
किसको ख़ुशी 
दे रही 
हमारी जली बस्ती । 


चित्रकुमार गुप्ता 
जवाहर नवोदय विद्यालय 
सैंडवार, बिजनौर 

    
  



Tuesday 26 March 2013

Toot kar shaakh se patte mitti me mil jaate hain....

टूटकर शाख से पत्ते मिटटी मैं मिल जाते हैं,
बीते हुए दिन लौट कर नहीं आते हैं,
हर रिश्ते को दोनों हाथों से संभालो,
आईना गर गिर तो टुकड़े बिखर जातें हैं,
ना कोई शहर अजनबी है, ना कोई शख्स,
प्यार से मिलोगे दुश्मन भी दोस्त हो जातें हैं,
बुलबुले पानी के खिलोने नहीं हो सकते,
हाथ लगते ही ये तो फुट जाते हैं,
उमीदों के चिराग रोशन रहने दो हमेशा,
हर दिन के बाद रात के घनघॊर अँधेरे आते हैं।
                                        -चित्र कुमार गुप्ता  

Tuesday 5 March 2013

ऐसा कहा जाता है कि मनुष्य के मतिष्क मेँ नवीन विचार सुरक्षा, शांति एवम विश्राम के वातावरण मेँ अंकुरित होते हैँ। लेकिन कुछ संस्थाऐँ अपने कर्मचारियोँ को कोल्हू के बैल की तरह जोतती हैँ , तत्पश्चात अपेक्षा करती हैँ कि उनके कर्मचारी कोई आविष्कारी क्रियाकलाप करेँ।
मैँ मानता हूँ कि आवश्यकता आविष्कार की जननी है लेकिन आवश्यकता की बेदी पर शरीर की बलि चढा देना कोई बुद्धिमानी नहीं है। अत: यह व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह अपनी क्षमता के अनुसार ही कार्य करे। अन्यथा इसके दुष्परिणाम हो सकते है।
साथ ही साथ अधिकारी वर्ग को भी चाहिए कि वह अहंकार से बचे तथा अपने अधिनस्थ व्यक्तियोँ को मशीन न समझकर मनुष्य समझे।
यह जिस्म किसी के काम आ जाये,

हँसते-2 इक रोज ये ज़ान चली जाये,

उतर जाये सीने मेँ नश्तर की तरह,

ये जुबाँ कोई ऐसी ना बात कह जाये,

ज़र्रा ज़मीँ का बनकर रहूँ हमेशा,

सितारोँ की खवाहिश न दिल को छू पाये,

खुशी और ग़म मेँ रहूँ यकसाँ,

कामयाबी मेँ दिल बदगुमाँ ना हो जाये,

परेशानी मेँ भी ना भूलूँ नाम तेरा,

तेरा नाम मेरे दिल पर लिख जाये,
कविता 
विजयी बनो ,
करो वरन जीत का ,
ताना बना बुनो,
एक ऐसे संगीत का,
की धुन पर तुम्हारी थिरके ये दुनिया,
कन्धों पर तुमको उठाले ये दुनिया ,
क्योंकि,
विजेता के गुण,
गाते हैं लोग, 
हारने वाले में  दोष,
बताते हैं लोग,
यह संसार का नियम प्रबल है,
जो सफल है ,
उसकी हर बात में  बल है 



द्वारा :- चित्र कुमार गुप्ता 
             जवाहर नवोदय  विद्यालय 
             सैन्द्वर बिजनोर .