काश आंसू सच या झूठ बता पाते
आंसू
जब आँखों से निकल कर
कपोलों पर लुढ़कते हैं,
तो दर्शाते हैं,
कि ह्रदय में
ग़मों की बर्फ
पिघल रही है
मुसीबतों कि तपिश
सिर पर पड़ रही है,
काश
आंसू भी
बयान दे पाते ,
बता पाते कि
वे सच्चे हैं
या बनावटी,
ह्रदय के तल से निकले हैं
या हैं मगरमच्छी,
कभी -२ दिल
हँसता है
आँख रोती है,
जब रोने वाले की
नीयत खोटी होती है
या फिर
कोई ख़ुशी
दिल के पात्र में
ठीक प्रकार से
नहीं समायोजित होती है ।
इसीलिए
यदि आंसू के
जुबान होती
तो पहचान पाते
कौन सच्चा है ,
कौन है फरेबी,
कौन शामिल है
हमारे ग़म में,
किसको ख़ुशी
दे रही
हमारी जली बस्ती ।
चित्रकुमार गुप्ता
जवाहर नवोदय विद्यालय
सैंडवार, बिजनौर
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